Sunday 2 August 2015

शिक्षाप्रद कथाएँ

1.
एक नदी के किनारे एक महात्मा रहते थे। उनके पास दूर-दूर से लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने आते थे।

एक बार एक व्यक्ति उनके पास आया और बोला- “महाराज! मैं लंबे समय से ईश्वर की भक्ति कर रहा हूं, फिर भी मुझे ईश्वर के दर्शन नहीं होते। कृपया मुझे उनके दर्शन कराइए।“

महात्मा बोले- “तुम्हें इस संसार में कौन सी चीजें सबसे अधिक प्रिय हैं?”

व्यक्ति बोला- “महाराज! मुझे इस संसार में सबसे अधिक प्रिय अपना परिवार है और उसके बाद धन-दौलत।“

महात्मा ने पूछा- “क्या इस समय भी तुम्हारे पास कोई प्रिय वस्तु है?”

व्यक्ति बोला- “मेरे पास एक सोने का सिक्का ही प्रिय वस्तु है।“

महात्मा ने एक कागज पर कुछ लिखकर दिया और उससे पढ़ने को कहा। कागज देखकर व्यक्ति बोला- “महाराज! इस पर तो ईश्वर लिखा है।“

महात्मा ने कहा- “अब अपना सोने का सिक्का इस कागज के ऊपर लिखे‘ईश्वर’शब्द पर रख दो।“

व्यक्ति ने ऐसा ही किया। फिर महात्मा बोले- “अब तुम्हें क्या दिखाई दे रहा है?”

वह बोला- “इस समय तो मुझे इस कागज पर केवल सोने का सिक्का रखा दिखाई दे रहा है।“

महात्मा ने कहा- “ईश्वर का भी यही हाल है। वह हमारे अंदर ही है, लेकिन मोह-माया के कारण हम उसके दर्शन नहीं कर पाते। जब हम उसे देखने की कोशिश करते हैं तो मोह-माया आगे आ जाती है। धन-संपत्ति, घर-परिवार के सामने ईश्वर को देखने का समय ही नहीं होता। यदि समय होता भी है तो उस समय जब विपदा होती है। ऐसे में ईश्वर के दर्शन कैसे होंगे?”

महात्मा की बातें सुनकर व्यक्ति समझ गया कि उसे मोह-माया से निकलना है।

2.

संन्यास लेने के बाद गौतम बुद्ध ने अनेक क्षेत्रों की यात्रा की। एक बार वह एक गांव में गए। वहां एक स्त्री उनके पास आई और
बोली- आप तो कोई राजकुमार लगते हैं।

क्या मैं जान सकती हूं कि इस युवावस्था में गेरुआ वस्त्र पहनने का क्या कारण है?
 बुद्ध ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि तीन
प्रश्नों के हल ढूंढने के लिए उन्होंने संन्यास लिया। यह शरीर जो युवा व आकर्षक है पर जल्दी ही यह वृद्ध होगा, फिर बीमार व अंत में मृत्यु के मुंह में चला जाएगा।
मुझे वृद्धावस्था, बीमारी व मृत्यु के कारण
का ज्ञान प्राप्त करना है। उनसे प्रभावित होकर उस स्त्री ने उन्हें भोजन के लिए
आमंत्रित किया। शीघ्र ही यह बात पूरे गांव
में फैल गई।
गांववासी बुद्ध के पास आए व आग्रह किया कि वे इस स्त्री के घर भोजन करने न जाएं क्योंकि वह चरित्रहीन है।
बुद्ध ने गांव के मुखिया से पूछा- क्या आप  भी मानते हैं कि वह स्त्री चरित्रहीन है?
मुखिया ने कहा कि मैं शपथ लेकर कहता हूं
कि वह बुरे चरित्र वाली है।आप उसके घर न
जाएं
 बुद्ध ने मुखिया का दायां हाथ पकड़ा और उसे ताली बजाने को कहा।
मुखिया ने कहा- मैं एक हाथ से ताली नहीं बजा सकता क्योंकि मेरा दूसरा हाथ आपने पकड़ा हुआ है।
बुद्ध बोले- इसी प्रकार यह स्वयं चरित्रहीन
कैसे हो सकती है जब तक इस गांव के पुरुष
चरित्रहीन न हों। अगर गांव के सभी पुरुष
अच्छे होते तो यह औरत ऐसी न होती इसलिए
इसके चरित्र के लिए यहां के पुरुष जिम्मेदार
हैं। यह सुनकर सभी लज्जित हो गए।

बुद्धम् सरणं गच्छामि।
धम्मम् सरणं गच्छामि। संघम् सरणं गच्छामि।


3.
 दोस्त का जवाब: दिल को छूने वाली बात👌

🎈बहुत  समय  पहले  की  बात  है। दो  दोस्त  बीहड़  इलाकों से  होकर  शहर जा  रहे  थे। गर्मी  बहुत  अधिक  होने  के  कारण  वो  बीच -बीच  में  रुकते  और  आराम  करते। उन्होंने  अपने  साथ  खाने-पीने की  भी  कुछ  चीजें  रखी  हुई  थीं। जब  दोपहर  में  उन्हें  भूख  लगी  तो  दोनों  ने  एक  जगह  बैठकर  खाने  का  विचार  किया .

🎈खाना खाते–खाते  दोनों  में  किसी  बात  को  लेकर  बहस  छिड गयी और  धीरे -धीरे  बात  इतनी  बढ़  गयी  कि  एक  दोस्त  ने  दूसरे  को  थप्पड़  मार  दिया .पर  थप्पड़  खाने  के  बाद  भी दूसरा दोस्त  चुप  रहा  और  कोई  विरोध  नहीं  किया। बस  उसने  पेड़  की  एक  टहनी  उठाई  और  उससे  मिटटी  पर  लिख  दिया- “ आज  मेरे सबसे अच्छे दोस्त ने मुझे  थप्पड़  मारा ”

🎈थोड़ी  देर  बाद  उन्होंने  पुनः  यात्रा  शुरू  की , मन  मुटाव  होने के  कारण  वो  बिना  एक -दूसरे  से  बात  किये  आगे  बढ़ते  जा  रहे  थे कि  तभी  थप्पड़  खाए  दोस्त  के  चीखने  की  आवाज़  आई. वह  गलती  से  दलदल  में  फँस  गया  था। दूसरे  दोस्त  ने  तेजी  दिखाते  हुए  उसकी  मदद  की  और  उसे  दलदल  से  निकाल  दिया.

🎈इस  बार  भी  वह  दोस्त  कुछ  नहीं  बोला  उसने  बस  एक  नुकीला  पत्थर  उठाया  और  एक  विशाल  पेड़  के  तने  पर  लिखने  लगा- आज  मेरे  सबसे अच्छे दोस्त  ने  मेरी  जान  बचाई।

🎈उसे  ऐसा  करते  देख  दूसरे मित्र से रहा नहीं गया और उसने  पूछा- “जब  मैंने  तुम्हे  पत्थर  मारा  तो  तुमने  मिटटी  पर  लिखा  और  जब मैंने  तुम्हारी  जान  बचाई  तो  तुम  पेड़  के  तने  पर कुरेद -कुरेद  कर  लिख  रहे  हो , ऐसा  क्यों ?”

🎈जवाब मिला- जब  कोई  तकलीफ  दे  तो  हमें  उसे अन्दर तक नहीं बैठाना चाहिए  ताकि  क्षमा  रुपी  हवाएं  इस मिटटी की तरह  ही  उस तकलीफ को हमारे जेहन से बहा ले जाएं लेकिन  जब  कोई  हमारे  लिए  कुछ  अच्छा  करे  तो उसे इतनी गहराई से अपने मन में बसा लेना चाहिए कि वो कभी हमारे जेहन से मिट ना सके .”

✌प्रेरक कथाएँ विचारों को प्रवाह देती हैं, उनमे स्वयं के लिए और अपनी अगली पीढ़ियों तक के लिए सन्देश छुपे होते हैं। इन्हें सुनते सुनाते रहना चाहिए।

4.
✅"मेरा सपना..!!!''

कल रात मैंने एक "सपना"  देखा.!!

सपने में....
 मैं और मेरी Family शिमला घूमने गए..!

हम सब शिमला की रंगीन वादियों में कुदरती नजारा देख रहे थे..!

जैसे ही हमारी Car Sunset Point की ओर निकली...

अचानक गाडी के Breakफेल हो गए और हम सब करीबन 1500 फिट गहरी खाई में जा गिरे..!


मेरी तो on the spot Death हो गई....

जीवन में कुछ अच्छे कर्म किये होंगे इसलिये यमराज मुझे स्वर्ग में ले गये...

देवराज इंद्र ने मुस्कुराकर मेरा स्वागत किया...

मेरे हाथ में  Bag देखकर पूछने लगे
''इसमें क्या है..?"


मैंने कहा...
'' इसमें मेरे जीवन भर की कमाई है, पांच करोड़ रूपये हैं ।"


इन्द्र ने 'BRP-16011966' नम्बर के Locker की ओर इशारा करते हुए कहा-
''आपकी अमानत इसमें रख दीजिये..!''

मैंने Bag रख दी...
मुझे एक Room भी दिया...
मैं Fresh होकर Market में निकला...

 देवलोक के Shopping मॉल मे अदभूत वस्तुएं देखकर मेरा मन ललचा गया..!

मैंने कुछ चीजें पसन्द करके Basket में डाली, और काउंटर पर जाकर उन्हें हजार हजार के करारे नोटें देने लगा...

Manager ने नोटों को देखकर कहा, ''यह करेंसी यहाँ नहीं चलती..!''

यह सुनकर मैं हैरान रह गया..!

मैंने इंद्र के पास Complaint की इंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा कि,
''आप व्यापारी होकर इतना भी नहीं जानते..? कि आपकी करेंसीबाजु के मुल्क पाकिस्तान, श्रीलंका और बांगलादेश में भी नही चलती...
और आप मृत्यूलोक की करेंसी स्वर्गलोक में चलाने की मूर्खता कर रहे हो..?''

 यह सब सुनकर मुझे मानो साँप सूंघ गया..!

मैं जोर जोर से दहाड़े मारकर रोने लगा. और परमात्मा से दरखास्त करने लगा,
''हे भगवान्.ये...  क्या हो गया.?''
''मैंने कितनी मेहनत से ये पैसा कमाया..!''
''दिन नही देखा, रात नही देखा,"
'' पैसा कमाया...!''

''माँ बाप की सेवा नही की, पैसा कमाया, बच्चों की परवरीश नही की, पैसा कमाया....
 पत्नी की सेहत की ओर ध्यान नही दिया, पैसा कमाया...!''

''रिश्तेदार, भाईबन्द, परिवार और यार दोस्तों से भी किसी तरह की हमदर्दी न रखते हुए पैसा कमाया.!!"

''जीवन भर हाय पैसा हाय पैसा किया...! ना चैन से सोया,  ना चैन से खाया... बस, जिंदगी भर पैसा कमाया.!''

''और यह सब व्यर्थ गया..?''

''हाय राम, अब क्या होगा..!''

इंद्र ने कहा,- ''रोने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है.!! "
"जिन जिन लोगो ने यहाँ जितना भी पैसा लाया, सब रद्दी हो गया।"

"जमशेद जी टाटा के 55 हजार करोड़ रूपये, बिरला जी के 47 हजार करोड़ रूपये, धीरू भाई अम्बानी के 29 हजार करोड़ अमेरिकन डॉलर...!
  सबका पैसा यहां पड़ा है...!"

मैंने इंद्र से पूछा- "फिर यहां पर कौनसी करेंसी चलती है..?"

इंद्र ने कहा- "धरती पर अगर कुछ अच्छे कर्म किये है...!

जैसे किसी दुखियारे को मदद की, किसी रोते हुए को हसाया, किसी गरीब बच्ची की शादी कर दी, किसी अनाथ बच्चे को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया...!
किसी को व्यसनमुक्त किया...!
 किसी अपंग स्कुल, वृद्धाश्रम या मंदिरों में दान धर्म किया...!"

"ऐसे पूण्य कर्म करने वालों को यहाँ पर एक Credit Card मिलता है...! और उसी के आधार पर आप यहाँ स्वर्गीय सुख का उपभोग ले सकते है..!''


मैंने कहा, "भगवन....    मुझे यह पता नहीं था. इसलिए मैंने अपना जीवन व्यर्थ गँवा दिया.!!"

"हे प्रभु, मुझे थोडा आयुष्य दीजिये..!''

 और मैं गिड़गिड़ाने लगा.!

इंद्र को मुझ पर दया आ गई.!!

इंद्र ने तथास्तु कहा
और मेरी नींद खुल गयी..!

मैं जाग गया..!

अब मैं वो दौलत कमाऊँगा जो वहाँ चलेगी..!!



5.
बड़े गुस्से से मैं घर से चला आया ..

इतना गुस्सा था की गलती से पापा के ही जूते पहन के निकल गया
मैं आज बस घर छोड़ दूंगा, और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...

जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ इंजीनियर बनाने के सपने देखतें है .....
आज मैं पापा का पर्स भी उठा लाया था .... जिसे किसी को हाथ तक न लगाने देते थे ...

मुझे पता है इस पर्स मैं जरुर पैसो के हिसाब की डायरी होगी ....
पता तो चले कितना माल छुपाया है .....
माँ से भी ...

इसीलिए हाथ नहीं लगाने देते किसी को..

जैसे ही मैं कच्चे रास्ते से सड़क पर आया, मुझे लगा जूतों में कुछ चुभ रहा है ....
मैंने जूता निकाल कर देखा .....
मेरी एडी से थोडा सा खून रिस आया था ...
जूते की कोई कील निकली हुयी थी, दर्द तो हुआ पर गुस्सा बहुत था ..

और मुझे जाना ही था घर छोड़कर ...

जैसे ही कुछ दूर चला ....
मुझे पांवो में गिला गिला लगा, सड़क पर पानी बिखरा पड़ा था ....
पाँव उठा के देखा तो जूते का तला टुटा था .....

जैसे तेसे लंगडाकर बस स्टॉप पहुंचा, पता चला एक घंटे तक कोई बस नहीं थी .....

मैंने सोचा क्यों न पर्स की तलाशी ली जाये ....

मैंने पर्स खोला, एक पर्ची दिखाई दी, लिखा था..
लैपटॉप के लिए 40 हजार उधार लिए
पर लैपटॉप तो घर मैं मेरे पास है ?

दूसरा एक मुड़ा हुआ पन्ना देखा, उसमे उनके ऑफिस की किसी हॉबी डे का लिखा था
उन्होंने हॉबी लिखी अच्छे जूते पहनना ......
ओह....अच्छे जुते पहनना ???
पर उनके जुते तो ...........!!!!

माँ पिछले चार महीने से हर पहली को कहती है नए जुते ले लो ...
और वे हर बार कहते "अभी तो 6 महीने जूते और चलेंगे .."
मैं अब समझा कितने चलेंगे

......तीसरी पर्ची ..........
पुराना स्कूटर दीजिये एक्सचेंज में नयी मोटर साइकिल ले जाइये ...
पढ़ते ही दिमाग घूम गया.....
पापा का स्कूटर .............
ओह्ह्ह्ह

मैं घर की और भागा........
अब पांवो में वो कील नही चुभ रही थी ....

मैं घर पहुंचा .....
न पापा थे न स्कूटर ..............
ओह्ह्ह नही
मैं समझ गया कहाँ गए ....

मैं दौड़ा .....
और
एजेंसी पर पहुंचा......
पापा वहीँ थे ...............

मैंने उनको गले से लगा लिया, और आंसुओ से उनका कन्धा भिगो दिया ..

.....नहीं...पापा नहीं........ मुझे नहीं चाहिए मोटर साइकिल...

बस आप नए जुते ले लो और मुझे अब बड़ा आदमी बनना है..

वो भी आपके तरीके से ...।।

"माँ" एक ऐसी बैंक है जहाँ आप हर भावना और दुख जमा कर सकते है...

और

"पापा" एक ऐसा क्रेडिट कार्ड है जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते है........Always Love Your Parents💕


6.
😇😇 बोध कथा  😇😇
👉दुख और नमक👈

एक बार एक नव युवक गौतम बुद्ध के पास पहुंचा और बोला
“महात्मा जी, मैं अपनी ज़िन्दगी से बहुत परेशान हूँ , कृपया इस
परेशानी से निकलने का उपाय बताएं।

बुद्ध बोले: “पानी के गिलास में एक मुट्ठी नमक डालो और उसे पियो..।”

युवक ने ऐसा ही किया.।
“इसका स्वाद कैसा लगा ?” बुद्ध ने पुछा।

“बहुत ही खराब, एकदम खारा” युवक थूकते हुए बोला ।

बुद्ध मुस्कुराते हुए बोले:
“एक बार फिर अपने हाथ में एक मुट्ठी नमक ले लो और मेरे पीछे-पीछे आओ। दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे और
थोड़ी दूर जाकर स्वच्छ पानी से बनी एक झील के सामने रुक गए।

“चलो, अब इस नमक को पानी में डाल दो , बुद्ध ने निर्देश दिया।"
युवक ने ऐसा ही किया ।

“अब इस झील का पानी पियो”, बुद्ध बोले ।
युवक पानी पीने लगा,

एक बार फिर बुद्ध ने पूछा: “बताओ इसका स्वाद कैसा है,
क्या अभी भी तुम्हे ये खारा लग रहा है ?”

“नहीं, ये तो मीठा है , बहुत अच्छा है ”, युवक बोला ।

बुद्ध युवक के बगल में बैठ गए और उसका हाथ थामते हुए बोले:

“जीवन के दुःख बिलकुल नमक की तरह हैं, न इससे कम ना ज्यादा ।
जीवन में दुःख की मात्रा वही रहती है, बिलकुल वही।

लेकिन हम कितने दुःख का स्वाद लेते हैं, ये इस पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे हैं।

इसलिए जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना कर सकते हो कि खुद के मन को बड़ा कर लो,

👉ग़िलास मत बने रहो

👉झील बन जाओ ।


7.

महाकवि कालिदास अपने समय के महान
विद्वान थे। उनके कंठ में साक्षात सरस्वती का
वास था। शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित
नहीं कर सकता था। अपार यश, प्रतिष्ठा और
सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी
विद्वत्ता का घमंड हो गया। उन्हें लगा कि
उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर
लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं
बचा। उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा
नहीं। एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ
का निमंत्रण पाकर कालिदास महाराज
विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर
रवाना हुए।
गर्मी का मौसम था, धूप काफी तेज़ और
लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग
आई। जंगल का रास्ता था और दूर तक कोई
बस्ती दिखाई नहीं दे रही थी। थोङी तलाश
करने पर उन्हें एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी।
पानी की आशा में वो उस ओर बढ चले। झोपड़ी
के सामने एक कुआं भी था। कालिदास जी ने
सोचा कि कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी
देने का अनुरोध किया जाए। उसी समय
झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर
निकली। बच्ची ने कुएं से पानी भरा और जाने
लगी।
कालिदास उसके पास जाकर बोले ” बालिके!
बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे।”
बच्ची ने कहा, “आप कौन हैं? मैं आपको जानती
भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए।”
कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं
जानता मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता?
फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले, “बालिके
अभी तुम छोटी हो। इसलिए मुझे नहीं जानती।
घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो। वो मुझे
देखते ही पहचान लेगा। मेरा बहुत नाम और
सम्मान है दूर-दूर तक। मैं बहुत विद्वान व्यक्ति
हूं।”
कालिदास के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से
अप्रभावित बालिका बोली, “आप असत्य कह
रहे हैं। संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन
दोनों को मैं जानती हूं। अपनी प्यास बुझाना
चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं?”
थोङी देर सोचकर कालिदास बोले, “मुझे नहीं
पता, तुम ही बता दो। मगर मुझे पानी पिला
दो। मेरा गला सूख रहा है।”
बालिका बोली, “दो बलवान हैं ‘अन्न’ और
‘जल’। भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से
बड़े बलवान को भी झुका दें। देखिए तेज़ प्यास ने
आपकी क्या हालत बना दी है।”
कलिदास चकित रह गए। लड़की का तर्क
अकाट्य था। बड़े से बड़े विद्वानों को
पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने
निरुत्तर खङे थे।
बालिका ने पुनः पूछा, “सत्य बताएं, कौन हैं
आप?” वो चलने की तैयारी में थी, कालिदास
थोड़ा नम्र होकर बोले, “बालिके! मैं बटोही
हूं।”
मुस्कुराते हुए बच्ची बोली, “आप अभी भी झूठ
बोल रहे हैं। संसार में दो ही बटोही हैं। उन
दोनों को मैं जानती हूँ, बताइए वो दोनों
कौन हैं?”
तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास जी की
बुद्धि क्षीण कर दी थी। लेकिन लाचार होकर
उन्होंने फिर अनभिज्ञता व्यक्त कर दी।
बच्ची बोली, “आप स्वयं को बङा विद्वान
बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते? एक स्थान से
दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही
कहलाता है। बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और
दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं। आप तो
थक गए हैं। भूख प्यास से बेदम हो रहे हैं। आप कैसे
बटोही हो सकते हैं?”
इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका
उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई। अब तो
कालिदास और भी दुखी हो गए। इतने
अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए। प्यास से
शरीर की शक्ति घट रही थी। दिमाग़ चकरा
रहा था। उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़
देखा। तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली। उसके
हाथ में खाली मटका था। वो कुएं से पानी
भरने लगी।
अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास
बोले, “माते प्यास से मेरा बुरा हाल है। भर पेट
पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा।”
बूढी माँ बोलीं, ” बेटा मैं तुम्हे जानती नहीं।
अपना परिचय दो। मैं अवश्य पानी पिला
दूँगी।”
कालिदास ने कहा, “मैं मेहमान हूँ, कृपया
पानी पिला दें।” “तुम मेहमान कैसे हो सकते
हो? संसार में दो ही मेहमान हैं। पहला धन और
दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता,
सत्य बताओ कौन हो तुम?”
अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश
कालिदास बोले “मैं सहनशील हूं। पानी पिला
दें।”
“नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती
जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है,
उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज
के भंडार देती है। दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो
फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच
बाताओ कौन हो?”
कालिदास लगभग मूर्छा की स्थिति में आ गए
और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले, ” मैं हठी
हूं।”
“फिर असत्य। हठी तो दो ही हैं, पहला नख और
दूसरा केश। कितना भी काटो बार-बार
निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप?”
पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके
कालिदास ने कहा, “फिर तो मैं मूर्ख ही हूं।”
“नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो। मूर्ख दो ही हैं।
पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब
पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित
जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर
भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा
करता है।”
कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास
वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना
में गिड़गिड़ाने लगे।
उठो वत्स… ये आवाज़ सुनकर जब कालिदास ने
ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां
खड़ी थी। कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए।
“शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार। तूने
शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा
को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और
अहंकार कर बैठे। इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने
के लिए ये स्वांग करना पड़ा।”
कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और
भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।


8.

एक दिन किसी कारण से स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान




पर चला गया ।वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा । उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख देते हैं । फिर सुई से उसको सीते हैं और सीने के बाद सु ई को अपनी टोपी पर लगा लेते हैं । जब उसने इसी क्रिया को चार-पाँच बार देखा तो उससे रहा नहीं गया, तो उसने अपने पापा से कहा कि वह एक बात उनसे पूछना चाहता है ? पापा ने कहा- बेटा बोलो क्या पूछना चाहते हो ? बेटा बोला- पापा मैं बड़ी देर से आपको देख रहा हूं , आप जब भी कपड़ा काटते हैं, उसके बाद कैंची को पैर के नीचे दबा देते हैं, और सुई से कपड़ा सीने के बाद, उसे टोपी पर लगा लेते हैं, ऐसा क्यों ? इसका जो उत्तर पापा ने दिया- उन दो पंक्तियाँ में मानों उसने ज़िन्दगी का सार समझा दिया ।

उत्तर था- ” बेटा, कैंची काटने का काम करती है, और सुई जोड़ने का काम करती है, और काटने वाले की जगह हमेशा नीची होती है परन्तु जोड़ने वाले की जगह हमेशा ऊपर होती है । यही कारण है कि मैं सुई को टोपी पर लगाता हूं और कैंची को पैर के नीचे रखता हूं ।”

9.

((((((( प्रभु से रिश्ता )))))


🌀 एक गरीब बालक था
 जो
कि अनाथ था।
.
🌹एक दिन वो बालक
एक
संत के आश्रम मेँ आया
 और
बोला,
बाबा आप सबका
ध्यान रखते है,
.
मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है
तो क्या मैँं यहां आपके आश्रम
में रह सकता हुं ?
.
🌳बालक की बात सुनकर संत
बोले बेटा तेरा नाम क्या है ?
.
उस बालक ने कहा मेरा कोई
नाम नहीं है।
.
तब संत ने उस बालक का
नाम रामदास रखा और बोले
की अब तुम यहीं आश्रम में
रहना।
.
💥रामदास वही रहने लगा और
आश्रम के सारे काम भी करने
लगा।
.
उन संत की आयु 80 वर्ष की
हो चुकी थी।
.
🍀एक दिन वो अपने शिष्यों से
बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर
जाना है।
.
तुम मेँ से कौन कौन मेरे मेरे
साथ चलेगा और कौन कौन
आश्रम में रुकेगा ?
.
🌸संत की बात सुनकर सारे
शिष्य बोले की हम आपके
साथ चलेंगे.!
.
क्योंकि उनको पता था की
यहां आश्रम में रुकेंगे तो सारा
काम करना पड़ेगा।
.
इसलिये सभी बोले की हम
तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर
चलेंगे।
.
🌴अब संत सोच में पड़ गये की
किसे साथ ले जाये और किसे
नही?
.
क्योंकि आश्रम पर किसी का
रुकना भी जरुरी था।
.
💥बालक रामदास संत के पास
आया और बोला बाबा अगर
आपको ठीक लगे तो मैं यहीं
आश्रम पर रुक जाता हूं ,,,
.
🌹संत ने कहा ठीक है पर तुझे
काम करना पड़ेगा।
.
आश्रम की साफ सफाई मे
भले ही कमी रह जाये पर
ठाकुर जी की सेवा मे कोई
कमी मत रखना।
.
💥रामदास ने संत से कहा की
बाबा मुझे तो ठाकुर जी की
सेवा करनी नहीं आती
.
आप बता दीजिये कि ठाकुर
जी की सेवा कैसे करनी है ?
.
फिर मैं कर दूंगा।
.
संत रामदास को अपने साथ
मंदिर ले गये
.
वहां उस मंदिर मे राम दरबार
की झाँकी थी।
🔔🔔🔔.
श्री राम जी,सीता जी, लक्ष्मण
जी और हनुमान जी थे।
.
💐संत ने बालक रामदास को
ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी
है सब सिखा दिया।
.
💥रामदास ने गुरु जी से कहा
की बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या
होगा ये भी बता दो
.
क्योँकि अगर रिश्ता पता चल
जाये तो सेवा करने में आनंद
आयेगा।
.
🌟उन संत ने बालक रामदास से
कहा की तु कहता था ना की
मेरा कोई नहीँ है...
.
तो आज से यह राम जी और
सीता जी तेरे माता-पिता हैं।
.
💥रामदास ने साथ में खड़े
लक्ष्मण जी को देखकर कहा
.
अच्छा बाबा और ये जो पास
में खड़े है वोह कौन है ?
.
🌳संत ने कहा ये तेरे चाचा जी हैं
.
और हनुमान जी के लिये कहा
की ये तेरे बड़े भैय्या है।
.
रामदास सब समझ गया और
फिर उनकी सेवा करने लगा।
.
संत शिष्योँ के साथ यात्रा पर
चले गये।
.
♡♡♡♡♡♡♡♡♡♡

आज सेवा का पहला दिन था
.
💥रामदास ने सुबह उठकर स्नान
किया और भीक्षा माँगकर लाया
.
और फिर भोजन तैयार किया
फिर भगवान को भोग लगाने
के लिये मंदिर आया।
.
💥रामदास ने श्री राम सीता
लक्ष्मण और हनुमान जी आगे
एक-एक थाली रख दी
.
और बोला अब पहले आप
खाओ फिर मैं भी खाऊँगा।
.
रामदास को लगा की सच मे
भगवान बैठकर खायेंगे.
.
पर बहुत देर हो गई रोटी तो
वैसी की वैसी थी।
.
तब बालक रामदास ने सोचा
नया नया रिश्ता बना है तो
शरमा रहे होंगे।
.
रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद
मे खोलकर देखा तब भी खाना
वैसे का वैसा पड़ा था।
.
अब तो रामदास रोने लगा की
मुझसे सेवा मे कोई गलती हो
गई इसलिये खाना नही खा रहे
हैं।
.
और यह नहीँ खायेंगे तो मैँ भी
नही खाऊँगा और मैं भूख से
मर जाऊँगा..!
.
इसलिये मै तो अब पहाड़ से
कूदकर ही मर जाऊँगा।
.
रामदास मरने के लिए निकल
जाता है तब भगवान राम जी
हनुमान जी को कहते हैं
.
हनुमान जाओ उस बालक
को लेकर आओ और बालक
से कहो की हम खाना खाने के
लिये तैयार हैं।
.
हनुमान जी जाते हैं
और
रामदास कूदने ही वाला होता
है कि हनुमान जी पीछे से पकड़
लेते हैं और बोलते है क्या कर
रहे हो?
.
💥रामदास कहता है आप कौन?
.
हनुमान जी कहते है मै तेरा
भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये?
.
💥रामदास कहता है अब आए
हो, इतनी देर से वहां बोल रहा
था की खाना खा लो तब आये
नहीं अब क्यों आ गए?
.
तब हनुमान जी बोले पिता श्री
का आदेश है, अब हम सब साथ
बैठकर खाना खाएंगे।
.
फिर राम जी,सीता जी, लक्ष्मण
जी ,हनुमान जी साक्षात बैठकर
भोजन करते हैं।
.
इसी तरह रामदास रोज उनकी
सेवा करता और भोजन करता।
.
सेवा करते करते 15 दिन हो गये,
.
एक दिन रामदास ने सोचा
की कोई भी माँ बाप हो वो
घर में काम तो करते ही हैं।
.
पर मेरे माँ बाप तो कोई
काम नहीँ करते सारे दिन खाते
रहते हैं।
.
मैं ऐसा नहीं चलने दूंगा।
.
रामदास मंदिर जाता है और
कहता है, पिता जी कुछ बात
करनी है आपसे।
.
राम जी कहते हैं बोल बेटा
क्या बात है ?
.
💥रामदास कहता है कन अब से
मैं अकेले काम नहीं करुंगा
आप सबको भी काम करना
पड़ेगा,
.
आप तो बस सारा दिन खाते
रहते हो और मैँ काम करता
रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा।
.
राम जी कहते हैं तो फिर
बताओ बेटा हमें क्या काम
करना है?
.
💥रामदास ने कहा माता जी अब
से रसोई आपके हवाले.
.
और चाचा जी(लक्ष्मणजी)
आप सब्जी तोड़कर लाओँगे.
.
और भैय्या जी (हनुमान जी)
आप लकड़ियाँ.लायेँगे.
.
और पिता जी(रामजी) आप
पत्तल बनाओगे।
.
सबने कहा ठीक है।
.
अब सभी साथ मिलकर काम
करते हुऐ एक परिवार की तरह
सब साथ रहने लगे।

🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
.
🌷एक दिन वो संत तीर्थ यात्रा
से लौटे तो सीधा मंदिर में गए
और देखा की मंदिर से प्रतिमाऐं
गायब हैं।
.
संत ने सोचा कहीं रामदास ने
प्रतिमा बेच तो नहीं दी?
.
संत ने रामदास को बुलाया और
पूछा भगवान कहें गए ?
.
💥रामदास भी अकड़कर बोला
की मुझे क्या पता रसोई में
कही काम कर रहे होंगे।
.
🌟संत बोले
ये क्या बोल रहा है ??
.
💥रामदास ने कहा बाबा मैं सच
बोल रहा हूँ जबसे आप गये हो ये
चारों काम में लगे हुऐ हैं।
.
वो संत भागकर रसोई मेँ गये
और सिर्फ एक झलक देखी की
सीता माता जी भोजन बना रही हैं।
.
राम जी पत्तल बना रहे हैं।
तभी अचानक
वह चारों गायब हो गये।
.
और मंदिर में विराजमान हो गये।

🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
.
संत रामदास के पास गये और
बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर
का दर्शन कराया
 तू धन्य है।
और
संत ने रो रो कर रामदास
के पैर पकड़ लिये...!

🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
.
🌻🌻प्यारे मित्रो ..!
                कहने का अर्थ यही है
 कि ठाकुर जी तो आज भी तैयार हैं
दर्शन देने के लिये
 पर कोई
रामदास जैसा भक्त भी तो होना चाहीये...!

🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂
.
राम जी हमारे बापू
सीता जी मेरी मैय्या है।
लक्ष्मण जी है चाचा हमारे
हनुमान जी हमारे भैय्या हैँ...
.
(((((( जय जय श्री राधे ))))))

10.

तेरहवीं सदी में महाराष्ट्र में एक प्रसिद्दसंत हुए संत नामदेव। कहा जाता है कि जब वे बहुत छोटे थे तभी से भगवान की भक्ति में डूबे रहते थे। बाल -काल में ही एक बार उनकी माता ने उन्हें भगवान विठोबा को प्रसाद चढाने के लिए दिया तो वे उसे लेकर मंदिर पहुंचे और उनके हठ के आगे भगवान को स्वयं प्रसाद ग्रहण करने आनापड़ा।एक बार संत नामदेव अपने शिष्यों को ज्ञान -भक्ति का प्रवचन दे रहे थे। तभी श्रोताओं में बैठे किसी शिष्य ने एक प्रश्न किया , ” गुरुवर , हमें बताया जाता है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है , पर यदि ऐसा है तो वो हमें कभी दिखाई क्यों नहीं देता , हम कैसे मान लें कि वो सचमुचहै , और यदि वो है तो हम उसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?”नामदेव मुस्कुराये और एक शिष्य को एक लोटा पानी और थोड़ा सा नमक लाने का आदेश दिया।शिष्य तुरंत दोनों चीजें लेकर आ गया।वहां बैठे शिष्य सोच रहे थे कि भला इन चीजों का प्रश्न से क्या सम्बन्ध , तभी संत नामदेव ने पुनः उस शिष्य से कहा , ” पुत्र , तुम नमक को लोटे में डाल कर मिला दो। “शिष्य ने ठीक वैसा ही किया।संत बोले , ” बताइये , क्या इस पानी में किसी को नमक दिखाई दे रहा है ?”सबने ‘नहीं ‘ में सिर हिला दिए।“ठीक है !, अब कोई ज़रा इसे चख कर देखे , क्या चखने पर नमक का स्वाद आ रहा है ?”, संत ने पुछा।“जी ” , एक शिष्य पानी चखते हुए बोला।“अच्छा , अब जरा इस पानी को कुछ देर उबालो।”, संत ने निर्देश दिया।कुछ देर तक पानी उबलता रहा और जब सारा पानी भाप बन कर उड़ गया , तो संत ने पुनः शिष्यों को लोटे में देखने को कहा और पुछा , ” क्या अब आपकोइसमें कुछ दिखाई दे रहा है ?”“जी , हमें नमक के कण दिख रहे हैं।”, एक शिष्य बोला।संत मुस्कुराये और समझाते हुए बोले ,” जिस प्रकार तुम पानी में नमक का स्वाद तो अनुभव कर पाये पर उसे देख नहीं पाये उसी प्रकार इस जग में तुम्हे ईश्वर हर जगह दिखाई नहीं देता पर तुम उसे अनुभव कर सकते हो। और जिस तरह अग्नि के ताप से पानी भाप बन कर उड़ गया और नमक दिखाई देने लगा उसी प्रकार तुम भक्ति ,ध्यान और सत्कर्म द्वारा अपने विकारों का अंत कर भगवान को प्राप्त कर सकते हो।”


11.

[ चार मोमबत्तियां ::]

रात का समय था, चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, नज़दीक ही एक कमरे में चार मोमबत्तियां जल रही थीं। एकांत पा कर आज वे एक दुसरे से दिल की बात कर रही थीं।

पहली मोमबत्ती बोली, ” मैं शांति हूँ , पर मुझे लगता है अब इस दुनिया को मेरी ज़रुरत नहीं है , हर तरफ आपाधापी और लूट-मार मची हुई है, मैं यहाँ अब और नहीं रह सकती। …” और ऐसा कहते हुए , कुछ देर में वो मोमबत्ती बुझ गयी।


दूसरी मोमबत्ती बोली, ” मैं विश्वास हूँ , और मुझे लगता है झूठ और फरेब के बीच मेरी भी यहाँ कोई ज़रुरत नहीं है , मैं भी यहाँ से जा रही हूँ …” , और दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।


तीसरी मोमबत्ती भी दुखी होते हुए बोली , ” मैं प्रेम हूँ, मेरे पास जलते रहने की ताकत है, पर आज हर कोई इतना व्यस्त है कि मेरे लिए किसी के पास वक्त ही नहीं, दूसरों से तो दूर लोग अपनों से भी प्रेम करना भूलते जा रहे हैं ,मैं ये सब और नहीं सह सकती मैं
 भी इस दुनिया से जा रही हूँ….” और ऐसा कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गयी।


 वो अभी बुझी ही थी कि एक मासूम बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ। मोमबत्तियों को बुझे देख वह घबरा गया, उसकी आँखों से आंसू टपकने लगे और वह रुंआसा होते हुए बोला, “अरे, तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही, तुम्हे तो अंत तक जलना है ! तुम इस तरह बीच में हमें कैसे छोड़ के जा सकती हो ?”
तभी चौथी मोमबत्ती बोली, ”प्यारे बच्चे घबराओ नहीं, मैं आशा हूँ और जब तक मैं जल रही हूँ हम बाकी मोमबत्तियों को फिर से जला सकते हैं। “


यह सुन बच्चे की आँखें चमक उठीं, और उसने आशा के बल पे शांति, विश्वास, और प्रेम को फिर से प्रकाशित कर दिया। जब सबकुछ बुरा होते दिखे ,चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार नज़र आये, अपने भी पराये लगने लगें तो भी उम्मीद मत छोड़िये….आशा मत छोड़िये, क्योंकि इसमें इतनी शक्ति है कि ये हर खोई हुई चीज
 आपको वापस दिल सकती है। अपनी आशा की मोमबत्ती को जलाये रखिये, बस .


12.

दो दोस्त थे। एक कौवा और दूसरा मोर। दोनों का मिजाज बिल्कुल अलग। कौवा शैतान और मोर बेहद शांत। कौवा दूसरों को सताने वाला और मोर दूसरों की सेवा करनेवाला। लेकिन चूंकि दोनों रहते थे एक ही पेड़ पर, सो दोस्ती गहरी होती गई।
एक दिन कोई आदमी वहां से गुजर रहा था। जब वह थक गया तो पेड़ के नीचे थोड़ी देर सुस्ताने बैठ गया। धीमी-धीमी बहती हवा में उसकी आंख लग गई। लेकिन ऊपर सूरज तेज था। मोर ने जब उसके चेहरे पर धूप पड़ते देखी तो चुपचाप अपने पंख उसके ऊपर पसार कर बैठ गया ताकि चेहरे पर छांव हो सके।
उधर, कौवे ने उसे सोते देखा तो शैतानी सूझने लगी। वह मन ही मन मुस्कुराने लगा और फिर मुसाफिर के चेहरे पर बीट कर उड़ गया। मुसाफिर हड़बड़ाकर उठा। उसने पेड़ पर ठीक अपने सिर के ऊपर मोर को बैठे देखा तो लगा कि बीट इसी ने की होगी। उसे बहुत गुस्सा आया और उसने एक पत्थर उठाकर मोर को दे मारा। पत्थर मोर को जाकर लगा और वह बुरी तरह जख्मी हो गया।
सीख: इस छोटी-सी कहानी से हमें सीख मिलती है कि आपकी संगति कैसी है, इसी के मुताबिक लोग आपके बारे में भी राय बनाते हैं। अगर आपके दोस्त अच्छे हैं तो आपका भी भला ही होगा। अगर आपके दोस्त खराब हैं तो नुकसान भी आप ही का होगा।

13.

मित्रों इस संवाद को ध्यान से पढ़ें और मनन भी करें।

🙏
एक संवाद......

👇

मुशीं फैज अली ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा :
"स्वामी जी हमें बताया गया है कि अल्लहा एक ही है।
यदि वह एक ही है, तो फिर संसार उसी ने बनाया होगा ?

"स्वामी जी बोले, "सत्य है।".

मुशी जी बोले ,"तो फिर इतने प्रकार के मनुष्य क्यों बनाये।
जैसे कि हिन्दु, मुसलमान, सिख्ख, ईसाइ और सभी को अलग-अलग धार्मिक ग्रंथ भी दिये।
एक ही जैसे इंसान बनाने में उसे यानि की अल्लाह को क्या एतराज था।
सब एक होते तो न कोई लङाई और न कोई झगङा होता।

".स्वामी हँसते हुए बोले, "मुंशी जी वो सृष्टी कैसी होती जिसमें एक ही प्रकार के फूल होते।

केवल गुलाब होता, कमल या रंजनिगंधा या गेंदा जैसे फूल न होते!".

फैज अली ने कहा सच कहा आपने
यदि
एक ही दाल होती
तो
खाने का स्वाद भी
एक ही होता।

दुनिया तो
बङी फीकी सी हो जाती!

स्वामी जी ने कहा, मुंशीजी! इसीलिये तो ऊपर वाले ने अनेक प्रकार के जीव-जंतु और इंसान बनाए
ताकि हम
पिंजरे का भेद भूलकर
जीव की एकता को पहचाने।

मुशी जी ने पूछा,
इतने मजहब क्यों ?

स्वामी जी ने कहा, " मजहब तो मनुष्य ने बनाए हैं,
प्रभु ने तो केवल धर्म बनाया है।

"मुशी जी ने कहा कि, " ऐसा क्यों है कि
एक मजहब में कहा गया है कि गाय और सुअर खाओ
और
 दूसरे में कहा गया है कि
गाय मत खाओ, सुअर खाओ एवं तीसरे में कहा गया कि
 गाय खाओ सुअर न खाओ;

इतना ही नही कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि मना करने पर जो इसे खाये उसे अपना दुश्मन समझो।"

स्वामी जी जोर से हँसते हुए मुंशी जी से पूछे कि ,"क्या ये सब प्रभु ने कहा है ?"

मुंशी जी बोले नही,"मजहबी लोग यही कहते हैं।"

स्वामी जी बोले,
 "मित्र!
किसी भी देश या प्रदेश का भोजन
वहाँ की जलवायु की देन है।

सागरतट पर बसने वाला व्यक्ति वहाँ खेती नही कर सकता,
 वह
सागर से पकङ कर
मछलियां ही खायेगा।

उपजाऊ भूमि के प्रदेश में
खेती हो सकती है।
वहाँ
अन्न फल एवं शाक-भाजी उगाई जा सकती है।

उन्हे अपनी खेती के लिए गाय और बैल बहुत उपयोगी लगे।

उन्होने
गाय को अपनी माता माना, धरती को अपनी माता माना और नदी को माता माना ।
क्योंकि
ये सब
उनका पालन पोषण
 माता के समान ही करती हैं।"

"अब जहाँ मरुभूमि है वहाँ खेती कैसे होगी?

खेती नही होगी तो वे
गाय और बैल का क्या करेंगे?

अन्न है नही
तो खाद्य के रूप में
पशु को ही खायेंगे।

तिब्बत में कोई शाकाहारी कैसे हो सकता है?
वही स्थिति अरब देशों में है। जापान में भी इतनी भूमि नही है कि कृषि पर निर्भर रह सकें।

"स्वामी जी फैज अलि की तरफ मुखातिब होते हुए बोले,
 " हिन्दु कहते हैं कि
मंदिर में जाने से पहले या
पूजा करने से पहले
स्नान करो।

मुसलमान नमाज पढने से पहले वाजु करते हैं।
क्या अल्लहा ने कहा है कि नहाओ मत,
 केवल लोटे भर पानी से
हांथ-मुँह धो लो?

"फैज अलि बोला,
क्या पता कहा ही होगा!

स्वामी जी ने आगे कहा,
नहीं,
 अल्लहा ने नही कहा!

अरब देश में इतना पानी कहाँ है कि वहाँ पाँच समय नहाया जाए।
जहाँ पीने के लिए पानी बङी मुश्किल से मिलता हो वहाँ कोई पाँच समय कैसे नहा सकता है।

यह तो
भारत में ही संभव है,
जहाँ नदियां बहती हैं,
झरने बहते हैं, कुएँ जल देते हैं।

तिब्बत में
यदि
पानी हो
तो वहाँ पाँच बार व्यक्ति यदि नहाता है तो ठंड के कारण ही मर जायेगा।
यह सब
प्रकृति ने
सबको समझाने के लिये किया है।


"स्वामी विवेका नंद जी ने आगे समझाते हुए कहा कि," मनुष्य की मृत्यु होती है।

उसके शव का अंतिम संस्कार करना होता है।

अरब देशों में वृक्ष नही होते थे, केवल रेत थी।
 अतः
वहाँ मृतिका समाधी का प्रचलन हुआ,
जिसे आप दफनाना कहते हैं।

भारत में वृक्ष बहुत बङी संख्या में थे,
लकडी.पर्याप्त उपलब्ध थी
 अतः
भारत में
अग्नि संस्कार का प्रचलन हुआ।

जिस देश में जो सुविधा थी
वहाँ उसी का प्रचलन बढा।

वहाँ जो मजहब पनपा
उसने उसे अपने दर्शन से जोङ लिया।

"फैज अलि विस्मित होते हुए बोला!
"स्वामी जी इसका मतलब है कि हमें
शव का अंतिम संस्कार
प्रदेश और देश के अनुसार करना चाहिये।
 मजहब के अनुसार नही।

"स्वामी जी बोले , "हाँ! यही उचित है।

" किन्तु अब लोगों ने उसके साथ धर्म को जोङ दिया।

 मुसलमान ये मानता है कि उसका ये शरीर कयामत के दिन उठेगा इसलिए वह शरीर को जलाकर समाप्त नही करना चाहता।

हिन्दु मानता है कि उसकी आत्मा फिर से नया शरीर धारण करेगी
इसलिए
उसे मृत शरीर से
एक क्षंण भी मोह नही होता।

"फैज अलि ने पूछा
कि,
"एक मुसलमान के शव को जलाया जाए और एक हिन्दु के शव को दफनाया जाए
तो क्या
प्रभु नाराज नही होंगे?

"स्वामी जी ने कहा," प्रकृति के नियम ही प्रभु का आदेश हैं।
वैसे
 प्रभु कभी रुष्ट नही होते
वे प्रेमसागर हैं,
करुणा सागर है।

"फैज अलि ने पूछा
तो हमें
उनसे डरना नही चाहिए?

स्वामी जी बोले, "नही!
हमें तो
ईश्वर से प्रेम करना चाहिए
वो तो पिता समान है,
दया का सागर है
फिर उससे भय कैसा।

डरते तो उससे हैं हम
जिससे हम प्यार नही करते।

"फैज अलि ने हाँथ जोङकर स्वामी विवेकानंद जी से पूछा, "तो फिर
मजहबों के कठघरों से
मुक्त कैसे हुआ जा सकता है?

"स्वामी जी ने फैज अलि की तरफ देखते हुए
मुस्कराकर कहा,
"क्या तुम सचमुच
कठघरों से मुक्त होना चाहते हो?"

फैज अलि ने स्वीकार करने की स्थिति में
अपना सर हिला दिया।

स्वामी जी ने आगे समझाते हुए कहा,
"फल की दुकान पर जाओ,
तुम देखोगे
वहाँ
आम, नारियल, केले, संतरे,अंगूर आदि अनेक फल बिकते हैं; किंतु वो दुकान तो फल की दुकान ही कहलाती है।

वहाँ अलग-अलग नाम से फल ही रखे होते हैं।

" फैज अलि ने
हाँ में सर हिला दिया।

स्वामी विवेकानंद जी ने आगे कहा कि ,"अंश से अंशी की ओर चलो।
तुम पाओगे कि सब
उसी प्रभु के रूप हैं।

"फैज अलि
अविरल आश्चर्य से
स्वामी विवेकानंद जी को
देखते रहे और बोले
"स्वामी जी
मनुष्य
ये सब क्यों नही समझता?

"स्वामी विवेकानंद जी ने शांत स्वर में कहा, मित्र! प्रभु की माया को कोई नही समझता।
मेरा मानना तो यही है कि, "सभी धर्मों का गंतव्य स्थान एक है।
जिस प्रकार विभिन्न मार्गो से बहती हुई नदियां समुंद्र में जाकर गिरती हैं,
उसी प्रकार
सब मतमतान्तर परमात्मा की ओर ले जाते हैं।
मानव धर्म एक है, मानव जाति एक है।"...

🙏💐🙏💐🙏💐🙏💐🙏
 



















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