Sunday 2 August 2015

ईश्वर बड़ा दयालु है!!

🙏ईश्वर बड़ा दयालु है!!🙏

एक राजा का एक विशाल फलों का बगीचा था. उसमे तरह-तरह के फल होते थे और उस बगीचा की सारी देखरेख एक किसान अपने परिवार के साथ करता था. वह किसान ईश्वर को बहुत मानता था ! उसका विश्वास था कि ईश्वर जो कुछ करते हे वह प्राणियों की भलाई के लिये करते हे ! वह किसान हर दिन बागीचा मैं के ताज़े फल लेकर राजा के राजमहल में जाता था.🙏
एक दिन किसान बगीचे में से अमरुद एक टोकरी और मीठे बेर की एक टोकरी लेकर राजमहल में जा रहा था, अब रस्ते में सोचने लगा की राजा को आज कोन सी टोकरी दू ? आखिर उसने मीठे बेर की टोकरी राजा को देने की सोची, किसान जब राजमहल में पहुचा, राजा किसी दूसरे ख्याल में खोया हुआ था, किसान ने मीठे बेर की टोकरी राजा के सामने रख दी और थोड़े दूर बेठ गया, अब राजा उसी खयालो-खयालों में टोकरी में से बेर उठाता था और किसान के माथे पे निशाना साधकर फेक रहा था.🙏

राजा का बेर जब भी किसान के माथे पर लगता था किसान कहता था, ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’ राजा फिर बेर फेकता था किसान फिर वही कहता था ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’
अब राजा को आश्चर्य हुआ, उसने किसान से कहा, मै तुझे बार-बार बेर मार रहा हु, और बेर जोर से तुम्हारे सिर पर लग रहे हैं, फिर भी तुम यह बार-बार क्यों कह रहे हो की ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’🙏
किसान ने नम्रता से बोला, महाराज, मैं तो आज आपको बड़े-बड़े अमरुद की टोकरी दे रहा था, लेकिन अचानक मेरा विचार बदल गया और आपके सामने मैं ने अमरूद के बजाय बेर की टोकरी रख दी, यदि बेर की जगह अमरुद रखे होते तो आज मेरा हाल क्या होता ? इसीलिए मैं कह रहा हू की ‘ईश्वर बड़ा दयालु है’!!🙏

हरे कृष्ण हरे कृष्ण , हरे राम हरे राम 🙏
धार्मिक-आध्यात्मिक चर्चा के मंच
♨प्रभु शरणं ♨से जुड़िए.
Click Link

https://goo.gl/EhT6PY




 बहुत समय पहले की बात है वृन्दावन में
श्रीबांके
बिहारी जी के मंदिर में रोज
पुजारी जी बड़े भाव से सेवा
करते थे। वे रोज बिहारी जी की
आरती करते , भोग
लगाते और उन्हें शयन कराते और रोज चार लड्डू
भगवान के बिस्तर के पास रख देते थे। उनका यह भाव
था कि बिहारी जी को यदि रात में भूख
लगेगी तो वे उठ
कर खा लेंगे। और जब वे सुबह मंदिर के पट खोलते थे
तो भगवान के बिस्तर पर प्रसाद बिखरा मिलता था।
इसी भाव से वे रोज ऐसा करते थे।
एक दिन बिहारी जी को शयन कराने के बाद
वे चार
लड्डू रखना भूल गए। उन्होंने पट बंद किए और चले
गए। रात में करीब एक-दो बजे , जिस दुकान से वे
बूंदी
के लड्डू आते थे , उन बाबा की दुकान
खुली थी। वे घर
जाने ही वाले थे तभी एक छोटा सा बालक
आया और
बोला बाबा मुझे बूंदी के लड्डू चाहिए।
बाबा ने कहा - लाला लड्डू तो सारे ख़त्म हो गए। अब
तो मैं दुकान बंद करने जा रहा हूँ। वह बोला आप अंदर
जाकर देखो आपके पास चार लड्डू रखे हैं। उसके हठ
करने पर बाबा ने अंदर जाकर देखा तो उन्हें चार लड्डू
मिल गए क्यों कि वे आज मंदिर नहीं गए थे। बाबा ने
कहा - पैसे दो।
बालक ने कहा - मेरे पास पैसे तो नहीं हैं और तुरंत
अपने हाथ से सोने का कंगन उतारा और बाबा को देने
लगे। तो बाबा ने कहा - लाला पैसे नहीं हैं तो रहने दो
,
कल अपने बाबा से कह देना , मैं उनसे ले लूँगा। पर वह
बालक नहीं माना और कंगन दुकान में फैंक कर भाग
गया। सुबह जब पुजारी जी ने पट खोला तो
उन्होंने देखा
कि बिहारी जी के हाथ में कंगन
नहीं है। यदि चोर भी
चुराता तो केवल कंगन ही क्यों चुराता। थोड़ी
देर बाद
ये बात सारे मंदिर में फ़ैल गई।
जब उस दुकान वाले को पता चला तो उसे रात की बात
याद आई। उसने अपनी दुकान में कंगन ढूंढा और
पुजारी
जी को दिखाया और सारी बात सुनाई। तब
पुजारी जी
को याद आया कि रात में , मैं लड्डू रखना ही भूल गया
था। इसलिए बिहारी जी स्वयं लड्डू लेने
गए थे।
🌿यदि भक्ति में भक्त कोई सेवा भूल भी जाता है तो
भगवान अपनी तरफ से पूरा कर लेते हैं।
शुभ-दिवस
राधे-राधे.
मांगी थी इक कली उतार कर
हार दे दिया
चाही थी एक धुन अपना सितार दे दिया
झोली बहुत ही छोटी
थी मेरी "कृष्णा"
तुमने तो कन्हैया हंस कर सारा संसार दे दिया
"""""""जय जय श्री राधे कृष्णा"""""



🌷🌺🙏जय श्री राधे🙏🌺🌷



 श्याम के नाम को थाम के.....
प्रीत के धाम में नाम कमा गई मीरा,
जीवन के इकतारे के तार पे....
एक ही नाम रमा गई मीरा,
जोगी जपी ओ तपी सबके कर...
प्रीत की रीत थमा गई मीरा,
प्राण समाये जो श्याम उन्ही में..
शरीर समेत समा गई मीरा.....!
10/08/2015, 08:01 - ‪+91 97800 49402‬: कांता नाम की वृन्दावन में बिहारी जी की अनन्य भक्त थी ।
बिहारी जी को अपना लाला कहा करती थी उन्हें लाड दुलार से रखा करती और दिन रात उनकी सेवा में लीन रहती थी,
क्या मजाल कि उनके लाला को जरा भी तकलीफ हो जाए
एक दिन की बात है कांता बाई अपने लाला को विश्राम करवा कर खुद भी तनिक देर विश्राम करने लगी तभी उसे जोर से हिचकिया आने लगी और वो इतनी बेचैन हो गयी कि उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा था
तभी कांता बाई कि पुत्री उसके घर पे आती है जिसका विवाह पास ही के गाँव में किया हुआ था तब कांता बाई की हिचकिया रुक गयी और वो अच्छा महसूस करने लग गयी उसने अपनी पुत्री को सारा वृत्तांत सुनाया कि कैसे वो हिचकियो में बेचैन हो गयी तब पुत्री ने कहा कि माँ मैं तुम्हे सच्चे मन से याद कर रही थी उसी के फलस्वरूप तुम्हे हिचकिया आ रही थी और अब जब मैं आ गयी हू तो तुम्हारी हिचकिया भी बंद हो चुकी है कांता बाई हैरान रह गयी कि ऐसा भी भलाहोता है तब पुत्री ने कहा हाँ माँ ऐसा ही होता है जब भी हम किसी अपने को मन से याद करते है तोहमारे अपने को हिचकिया आने लगती है
तब कांता बाई ने सोचा कि मैं तो अपने ठाकुर कोहर पल याद करती रहती हू
यानी मेरे लाला को भी हिचकिया आती होंगी??
हाय मेरा छोटा सा लाला हिचकियो में कितना बेचैन हो जाता होगा
नहीं ऐसा नहीं होगा अब से मैं अपने लाला को जरा भी परेशान नहीं होने दूंगी
और उसी दिन से कांता बाई ने ठाकुर को याद करना छोड़ दिया अपने लाला को भी अपनी पुत्री को दे दिया सेवा करने के लिए। लेकिन कांता बाई ने एक पल के लिए भी अपने लाला को याद नहीं किया और ऐसा करते करते हफ्ते बीत गए
और फिर एक दिन जब कांता बाई सो रही थी तो साक्षात बांके बिहारी कांता बाई के सपने में आते है और कांता बाई के पैर पकड़ कर ख़ुशी के आंसू रोने लगते है....?
कांता बाई फोरन जाग जाती है और उठकर अपने लाला को प्रणाम करते हुए रोने लगती है और कहती है कि प्रभु आप तो उन को भी नहीं मिल पाते जो समाधि लगाकर निरंतर आपका ध्यान करते रहते है फिर मैं पापिन जिसने आपको याद भी करना छोड़ दिया है आप उसे दर्शन देने कैसे आ गए??
तब बिहारी जी ने मुस्कुरा कर कहा-
माँ कोई भी मुझे याद करता है तो या तो उसके पीछे किसी वस्तु का स्वार्थ होता है या फिर कोई साधू ही जब मुझे याद करता है तो उसके पीछेभी उसका मुक्ति पाने का स्वार्थ छिपा होता हैलेकिन धन्य हो माँ तुम ऐसी पहली भक्त हो जिसने ये सोचकर मुझे याद करना छोड़ दिया कि जब मैं अपने लाला को याद करती होंगी तो उसे हिचकिया आती होंगी और वो बेचैन होता होगा मेरी इतनी परवाह करने वाली माँ मैंने पहली बार देखी है तभी कांता बाई अपने मिटटी के शरीर को छोड़ कर अपने लाला में ही लीन हो जाती है और कांता बाई के लाला की सेवा पहले के जैसेउसकी बेटी के हाथो होने लगती है...
इसलिए बंधुओ वो ठाकुर तुम्हारी भक्ति के भी भूखे नहीं है वो तो केवल तुम्हारे प्रेम के भूखे है उनसे प्रेम करना सीखो और उनसे केवल और केवल किशोरी जी ही प्रेम करना सिखा सकती है इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वो निरंतर किशोरी जी के चरणों का ध्यान करता रहे और उनके नाम का संकीर्तन अपनी जुबान से करता रहेऔर वो दिन दूर नहीं जब किशोरी जी साक्षात बांके बिहारी जी से तुम्हे मिलवा देंगी........
जय श्री राधे राधे जी


ईश्वर का स्थान

एक बार ब्रह्माजी दुविधा में पड़ गए। लोगों की बढ़ती साधना वृत्ति से वह प्रसन्न तो थे पर इससे उन्हें व्यावहारिक मुश्किलें आ रही थीं। कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता, तो ब्रह्माजी के पास भागा-भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताता। उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता। ब्रहाजी इससे दुखी हो गए थे। अंतत: उन्होंने इस समस्या के निराकरण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले, ‘देवताओं, मैं मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं। कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता है, जिससे न तो मैं कहीं शांति पूर्वक रह सकता हूं, न ही तपस्या कर सकता हूं। आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके।’

ब्रह्माजी के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए। गणेश जी बोले, ‘आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं।’ ब्रह्माजी ने कहा, ‘यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में है। उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा।’ इंद्रदेव ने सलाह दी कि वह किसी महासागर में चले जाएं। वरुण देव बोले ‘आप अंतरिक्ष में चले जाइए।’

ब्रह्माजी ने कहा, ‘एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा।’ ब्रह्माजीनिराश होने लगे थे। वह मन ही मन सोचने लगे, ‘क्या मेरे लिए कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं है, जहां मैं शांतिपूर्वक रह सकूं।’ अंत में सूर्य देव बोले, ‘आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं। मनुष्य इस स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा।’ ब्रह्माजी को सूर्य देव की बात पसंद आ गई। उन्होंने ऐसा ही किया। वह मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए। उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए ब्रह्माजीको ऊपर ,नीचे, दाएं, बाएं, आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है पर वह मिल नहीं रहे। मनुष्य अपने भीतर बैठे हुए देवता को नहीं देख पा रहा है।



एक भक्त हर रोज प्रभु के मंगला दर्शन अपने नजदीकी मंदिर में करता है, और फिर अपने नित्य जीवन कार्य में लग जाता है।
कई वर्षो तक यह नियम चलता रहा।
एक दिन वह भक्त मंदिर पहुँचा तो श्री प्रभु के मंदिर के द्वार बंद पाये, वह आकुल-व्याकुल हो गया।
"अरे ऐसा कैसे हो सकता है?"
मंदिर के द्वार समयानुसार ही बंद किये गये थे, उन्हें मंदिर आने मे थोडी देर हूई थी इस वजह से उनको बहुत खेद पहुंचा।
वह नजदीक एक जगह पर बैठ गया, उनकी आँखों से आँसू बहने लगे, और आंतरिक पुकार उठी।
"ओ मुझसे कहाँ लगी इतनी देर अरे ओ साँवरिया,
साँवरिया साँवरिया मेरे मन बसिया..."
बहते आंसू और दिल की बैचेनी ने उन्हें तडपता दिया, पूरे तन में विरह की आग लग गई।
इतने में कहीं से पुकार आयी "ओ तुने कहाँ लगायी इतनी देर, अरे ओ बांवरिया, बांवरिया! बांवरिया मेरे प्रिय प्यारा..."
वह भक्त आसपास देखने लगा, कौन पुकारता है, पर न कोई आस और न कोई पास था।
वह इधर उधर देखने लगा, पर वहा कोई नहीं था, वह बैचेन हो कर बेहोश हो गया।
काफी देर हुई, उनके पैर को जल की धारा छूने लगी, और वह होश में आ गया।
वह सोचने लगा यह जल आया कहां से?
धीरे-धीरे उठ कर वह जल के स्त्रोत को ढूंढने लगा तो देखा कि वह स्त्रोत श्री प्रभु के द्वार से आ रहा था।
इतने में फिर से आवाज आई- " ओ तुने क्युं लगायी इती देर, अरे ओ बांवरिया..."
वह सोच में पड गया "यह क्या, यह कौन पुकारता है, यहाँ न कोई है, तो यह पुकार कैसी?"
वह फूट फूट कर रोने लगा और कहने लगा - "प्रभु ओ प्रभु..." और फिर से बेहोश हो गया।
बेहोशी में उन्होंने श्रीप्रभु के दर्शन पाये और उनका मुखडा आनंद पाने लगा, उनके चेहरे की आभा तेज होने लगी।
इतने में मंदिर में आरती का घंटा बजा, आये हूऐ अन्य दर्शनार्थी ने उन्हें जगाया।
उन्होंने श्रीप्रभु के जो दर्शन पाये, वहीं दर्शन थे जो उन्होंने बेहोशी में पाये थे।
इतने में उनकी नजर श्रीप्रभु के नयनों पर पहुंची, और वह भक्त स्थिर हो गया।
श्रीप्रभु के नयनों में आंसू.....वह अति गहराई में जा पहुँचा...
ओहहह....
जो जल मुझे स्पर्श किया था वह श्रीप्रभु के अश्रु....
नहीं-नहीं मुझसे यह क्या हो गया?
श्रीप्रभु को कष्ट...
वह बहुत रोया और बार-बार क्षमा माँगने लगा।
श्रीप्रभु ने मुस्कराते दर्शन से कहा, तुने कयुं करदी देर?
अरे अब पल की भी न करना देर ओ मेरे बांवरिया.........
।।हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्ण कृष्णा हरे हरे ।।
।।हरे रामा हरे रामा रामा रामा हरे हरे ।।




No comments:

Post a Comment