Sunday 2 August 2015

जानने योग्य बातें

1- 90 प्रतिशत रोग केवल पेट से होते हैं। पेट में कब्ज नहीं रहना चाहिए। अन्यथा रोगों की कभी कमी नहीं रहेगी।

2- कुल 13 अधारणीय रोग हैं

3-160 रोग केवल मांसाहार से होते है

4- 103 रोग भोजन के बाद जल पीने से होते हैं। भोजन के 1 घंटे बाद ही जल पीना चाहिये।

5- 80 रोग चाय पीने से होते हैं।

6- 48 रोग ऐलुमिनियम के बर्तन या कुकर के खाने से होते हैं।

7- शराब, कोल्डड्रिंक और चाय के सेवन से हृदय रोग होता है।

8- अण्डा खाने से हृदयरोग, पथरी और गुर्दे खराब होते हैं।

9- ठंडेजल (फ्रिज)और आइसक्रीम से बड़ीआंत सिकुड़ जाती है।

10- मैगी, गुटका, शराब, सूअर का माँस, पिज्जा, बर्गर, बीड़ी, सिगरेट, पेप्सी, कोक से बड़ी आंत सड़ती है।

11- भोजन के पश्चात् स्नान करने से पाचनशक्ति मन्द हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है।

12- बाल रंगने वाले द्रव्यों(हेयरकलर) से आँखों को हानि (अंधापन भी) होती है।

13- दूध(चाय) के साथ नमक(नमकीन पदार्थ) खाने से चर्म रोग हो जाता है।

14- शैम्पू, कंडीशनर और विभिन्न प्रकार के तेलों से बाल पकने, झड़ने और दोमुहें होने लगते हैं।

15- गर्म जल से स्नान से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति कम हो जाती है और शरीर कमजोर हो जाता है। गर्म जल सिर पर डालने से आँखें कमजोर हो जाती हैं।

16- टाई बांधने से आँखों और मस्तिश्क हो हानि पहुँचती है।

17- खड़े होकर जल पीने से घुटनों(जोड़ों) में पीड़ा होती है।

18- खड़े होकर मूत्रत्याग करने से रीढ़ की हड्डी को हानि होती है।

19- भोजन पकाने के बाद उसमें नमक डालने से रक्तचाप (ब्लडप्रेशर) बढ़ता है।

20- जोर लगाकर छींकने से कानों को क्षति पहुँचती है।

21- मुँह से साँस लेने पर आयु कम होती है।

22- पुस्तक पर अधिक झुकने से फेफड़े खराब हो जाते हैं और क्षय(टीबी) होने का डर रहता है।

23- चैत्र माह में नीम के पत्ते खाने से रक्त शुद्ध हो जाता है मलेरिया नहीं होता है।

24- तुलसी के सेवन से मलेरिया नहीं होता है।

25- मूली प्रतिदिन खाने से व्यक्ति अनेक रोगों से मुक्त रहता है।

26- अनार आंव, संग्रहणी, पुरानी खांसी व हृदय रोगों के लिए सर्वश्रेश्ठ है।

27- हृदयरोगी के लिए अर्जुनकी छाल, लौकी का रस, तुलसी, पुदीना, मौसमी,
सेंधा नमक, गुड़, चोकरयुक्त आटा, छिलकेयुक्त अनाज औशधियां हैं।

28- भोजन के पश्चात् पान, गुड़ या सौंफ खाने से पाचन अच्छा होता है। अपच नहीं होता है।

29- अपक्व भोजन (जो आग पर न पकाया गया हो) से शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है।

30- मुलहठी चूसने से कफ बाहर आता है और आवाज मधुर होती है।

31- जल सदैव ताजा(चापाकल, कुए आदि का) पीना चाहिये, बोतलबंद (फ्रिज) पानी बासी और अनेक रोगों के कारण होते हैं।

32- नीबू गंदे पानी के रोग (यकृत, टाइफाइड, दस्त, पेट के रोग) तथा हैजा से बचाता है।

33- चोकर खाने से शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। इसलिए सदैव गेहूं मोटा ही पिसवाना चाहिए।

34- फल, मीठा और घी या तेल से बने पदार्थ खाकर तुरन्त जल नहीं पीना चाहिए।

35- भोजन पकने के 48 मिनट के
अन्दर खा लेना चाहिए। उसके पश्चात् उसकी पोशकता कम होने लगती है। 12 घण्टे के बाद पशुओं के खाने लायक भी नहीं रहता है।।

36- मिट्टी के बर्तन में भोजन पकाने से पोशकता 100% कांसे के बर्तन में 97% पीतल के बर्तन में 93% अल्युमिनियम के बर्तन और प्रेशर कुकर में 7-13% ही बचते हैं।

37- गेहूँ का आटा 15 दिनों पुराना और चना, ज्वार, बाजरा, मक्का का आटा 7 दिनों से अधिक पुराना नहीं प्रयोग करना चाहिए।

38- 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मैदा (बिस्कुट, बे्रड, समोसा आदि) कभी भी नहीं खिलाना चाहिए।

39- खाने के लिए सेंधा नमक सर्वश्रेश्ठ होता है उसके बाद काला नमक का स्थान आता है। सफेद नमक जहर के समान होता है।

40- जल जाने पर आलू का रस, हल्दी, शहद, घृतकुमारी में से कुछ भी लगाने पर जलन ठीक हो जाती है और फफोले नहीं पड़ते।

41- सरसों, तिल,मूंगफली या नारियल का तेल ही खाना चाहिए। देशी घी ही खाना चाहिए है। रिफाइंड तेल और वनस्पति घी (डालडा) जहर होता है।

42- पैर के अंगूठे के नाखूनों को सरसों तेल से भिगोने से आँखों की खुजली लाली और जलन ठीक हो जाती है।

43- खाने का चूना 70 रोगों को ठीक करता है।

44- चोट, सूजन, दर्द, घाव, फोड़ा होने पर उस पर 5-20 मिनट तक चुम्बक रखने से जल्दी ठीक होता है! हड्डी टूटने पर चुम्बक का प्रयोग करने से आधे से भी कम समय में ठीक होती है।

45- मीठे में मिश्री, गुड़, शहद, देशी(कच्ची) चीनी का प्रयोग करना चाहिए सफेद चीनी जहर होता है।

46- कुत्ता काटने पर हल्दी लगाना चाहिए।

47-बर्तन मिटटी के ही परयोग करन चाहिए।

48- टूथपेस्ट और ब्रश के स्थान पर दातून और मंजन करना चाहिए दाँत मजबूत रहेंगे।
(आँखों के रोग में दातून नहीं करना)

49- यदि सम्भव हो तो सूर्यास्त के पश्चात् न तो पढ़े और लिखने का काम तो न ही करें तो अच्छा है।

50- निरोग रहने के लिए अच्छी नींद और अच्छा(ताजा) भोजन अत्यन्तआवश्यक है।

51- देर रात तक जागने से शरीर
की प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है। भोजन का पाचन भी ठीक से नहीं हो पाता है आँखों के रोग भी होते हैं।

52- प्रातः का भोजन राजकुमार के समान, दोपहर का राजा और रात्रि का भिखारी के समान करना चाहिए






🌹🌹🌹हवन क्यों करते हैं स्वाहा और धार्मिक महत्व🌹🌹 🌹🌹🙏

हवन  करने को 'देवयज्ञ' कहा जाता है. हवन में सात पेड़ों की समिधाएँ (लकड़ियाँ) सबसे उपयुक्त होतीं हैं- आम, बड़, पीपल, ढाक, जाँटी, जामुन और शमी. हवन से शुद्धता और सकारात्मकता बढ़ती है. रोग और शोक मिटते हैं. इससे गृहस्थ जीवन पुष्ट होता है.

हवन करने के लिए किसी वृक्ष को काटा नहीं जाता, ऐसा करने वाले धर्म विरुद्ध आचरण करते हैं. जंगल से समिधाएँ बीनकर लाई जाती है अर्थात जो पत्ते, टहनियाँ या लकड़िया वृक्ष से स्वत: ही धरती पर गिर पड़े हैं उन्हें ही हवन के लिए चयन किया जाता है.

वैश्वदेवयज्ञ को भूत यज्ञ भी कहते हैं. पंच महाभूत से ही मानव शरीर है. सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्त्तव्य समझना उन्हें अन्न-जल देना ही भूत यज्ञ या वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है. अर्थात जो कुछ भी भोजन कक्ष में भोजनार्थ सिद्ध हो उसका कुछ अंश उसी अग्नि में होम करें जिससे भोजन पकाया गया है.


अर्जित धन को सत्कर्मों में लगाने को ‘यज्ञ’ कहा गया है. यज्ञ का अर्थ केवल अग्नि को समिधा समर्पित करना मात्र नहीं है.भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, यज्ञशिष्टाशिनः संतो कारणात् यानी, हम जो अर्पित करते हैं, उसमें देवता, ऋषि, पितर, पशु-पक्षी, वृक्ष-लता आदि का भाग है.

हम इन सभी से कुछ न कुछ प्राप्त करते हैं, अतः इन सभी के ऋणी हैं. अतएव इनका भाग इन्हें यथायोग्य दे देना यज्ञ है. इसलिए प्राचीन काल से ही भोजन तैयार करते समय पहली रोटी गाय के लिए, एक रोटी कुत्ते आदि मूक प्राणी के लिए रखने का प्रचलन है. कहा गया है, ‘जो मनुष्य अपनी अर्जित आय में से सभी का भाग देने के बाद बचे हुए अन्न को खाता है, वह अमृत खाता है. जो ऋण न चुकाकर, धन को अपना समझ अकेला हड़प जाता है, वह पाप का भागी बनता है.’


हविष्यात्र

१. - द्विजातियों के लिये सबेरे और शाम- दो ही समय भोजन करना वेद विहित है.



२. - गोल लौकी, लहसुन, ताड़ का फल और भाँटा- इन्हें वैष्णव पुरुषों को नहीं खाना चाहिये.वैष्णव के लिये बड़, पीपल, मदार, कुम्भी, तिन्दुक, कोविदार (कचनार) और कदम्ब के पत्ते में भोजन करना निषिद्ध है.

३. - जला हुआ तथा भगवान को अर्पण न किया हुआ अन्न, जम्बीर और बिजौरा नीबू, शाक तथा ख़ाली नमक भी वैष्णव को नहीं खाना चाहिये.यदि दैवात कभी खा ले तो भगवन्नाम का स्मरण करना चाहिये.


हविष्यान्न - हेमन्त ऋतु में उत्पन्न होने वाला सफेद धान जो सड़ा हुआ न हो, मूँग, तिल, यव, केराव, कंगनी, नीवार (तीना), शाक, बथुवा, मूली, दूसरे-दूसरे मूल-शाक, सेंधा और साँभर नमक, गाय का दही, गाय का घी, बिना माखन निकाला हुआ गाय का दूध, कटहल, आम, हर्रे, पिप्पली, ज़ीरा, नारंगी, इमली, केला, लवली (हरफा रेवरी), आँवले का फल, गुड़ के सिवा ईंख के रस से तैयार होने वाली अन्य सभी वस्तुएँ तथा बिना तेल के पकाया हुआ अन्न-इन सभी खाद्य पदार्थों को मुनि लोग हविष्यान्न कहते हैं.


स्वाहा का उच्चारण क्यों?-  किसी भी शुभ कार्य में हवन होते हमने देखा है कि अग्नि में आहूति देते वक्त स्वाहा का उच्चारण किया जाता है. अर्थ: स्वाहा शब्द का अर्थ है सु+आ+हा सुरो यानि अच्छे लोगों को दिया गया. अग्नि का प्रज्जवलन कर उसमें औषधियुक्त (खाने योग्य घी मिश्रित) की आहूति देकर क्रम से देवताओं के नाम का उल्लेख कर उसके पीछे स्वाहा बोला जाता है. जैसे इंद्राय स्वाहा यानि इंद्र को प्राप्त हो इसी तरह समस्त हविष्य सामग्री अलग-अलग देवताओं की समर्पित की जाती है.

धार्मिक महत्व-  श्रीमद्भागवत एवं शिवपुराण के अनुसार दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थी. उनमें से एक पुत्री का विवाह उन्होंने अग्नि देवता के साथ किया था. उनका नाम था स्वाहा. अग्नि अपनी पत्नी स्वाहा द्वारा ही भोजन ग्रहण करते है. दक्ष ने अपनी एक अन्य पुत्री स्वाधा का विवाह पितरों के साथ किया था. अत: पितरों को आहूति देने के लिए स्वाहा के स्थान पर स्वाधा शब्द बोला जाता है.


🌹श्री राधा रमण परिवार प्रयास🌹
06/08/2015, 10:18 - Prabhu Sharanam: 🌞 चक्रधर कृष्णा 🌞  

                                                                       पूजन करने से पहले ध्यान रखें यह  बातें !


एक घर में कम से कम पांच देवी देवताओं की पूजा होनी ही चाहिए. :-

गणेश,शिव,विष्णु,सूर्य,दुर्गा। किसी भी देव या देवी के पूजन के प्रति संकल्प एकाग्रता,श्रद्धा होना बहुत ही आवश्यक है।


हम सभी के घर में भगवान का मंदिर होता है लेकिन अज्ञानतावश हम कुछ गलतियां कर जाते हैं। प्रस्तुत है कुछ आवश्यक महत्वपूर्ण जानकारियां :-


एक घर में कम से कम पांच देवी देवताओं की पूजा होनी ही चाहिए. :-

गणेश,शिव,विष्णु,सूर्य,दुर्गा। किसी भी देव या देवी के पूजन के प्रति संकल्प एकाग्रता,श्रद्धा होना बहुत ही आवश्यक है।

घर में दो शिवलिंग,तीन गणेश,दो शंख,दो सूर्य,दो दुर्गा मूर्तियों,दो गोमती चक्र और दो शालिग्राम की पूजा करने से शांति की प्राप्ति होती है।


शालिग्राम जी की प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती।


दुर्गा की एक,सूर्य की सात,गणेश की तीन,विष्णु की चार और शिव की आधी ही परिक्रमा करनी चाहिए।


तुलसी के बिना ईश्वर की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। तुलसी की मंजरी सब फूलों से बढ़कर मानी जाती है।

         हरे कृष्णा🙏
06/08/2015, 10:19 - Prabhu Sharanam: जय भोले नाथहर हर गंगेराजा भगीरथ ने जनकल्याण के लिए पतितपावन गंगाजी को पृथ्वी पर लाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी नेराजा भगीरथ को यह वचन दिया कि सर्वकल्याणकारी गंगा पृथ्वी पर आएगी। मगर समस्या यह थी कि गंगाजी को पृथ्वी पर संभालेगा कौन? समस्या का समाधान करते हुए ब्रह्माजी ने कहा कि गंगाजी को धारण करने की शक्ति भगवान शंकर के अतिरिक्त किसी में भी नहीं है अतः तुम्हें भगवान रुद्र की तपस्या करना चाहिए। ऐसा कहकर ब्रह्माजी अंतर्धान हो गए। ब्रह्माजी के वचन सुनकर भगीरथ ने प्रभु भोलेनाथ की कठोर तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगीरथ से कहा- 'नरश्रेष्ठ! मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। मैं गिरिराजकुमारी गंगा को अपने मस्तक पर धारण करके संपूर्ण प्राणियों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करूँगा।' भगवान शंकर की स्वीकृति मिल जाने के बाद हिमालय की ज्येष्ठ पुत्री गंगाजी बड़े ही प्रबलवेग से आकाश से भगवान शंकर के मस्तक परगिरीं। उस समय गंगाजी के मन में भगवान शंकर को पराजित करने की प्रबल इच्छा थी। गंगाजी का विचार था कि मैं अपने प्रबल वेग से भगवान शंकर को लेकर पाताल में चली जाऊँगी। गंगाजी के इस अहंकार को जान शिवजी कुपित हो उठे और उन्हो ंने गंगाजी को अदृश्य करने का विचार किया। पुण्यशीला गंगा जब भगवानरुद्र के मस्तक पर गिरीं, तब वे उनकी जटाओं के जाल में बुरी तरह उलझ गईं। लाख प्रयत्न करने पर भी वे बाहर न निकलसकीं। जब भगीरथ ने देखा कि गंगाजी भगवान शिव के जटामंडल में अदृश्य हो गईं, तब उन्होंने पुनः भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तप करना प्रारंभ कर दिया। उनके तप से संतुष्ट होकर भगवान शिव ने गंगाजी को लेकर बिंदु सरोवर में छोड़ा। वहाँ से गंगाजी सात धाराएँ हो गईं। इस प्रकार ह्लादिनी, पावनी और नलिनी नामक की धाराएँ पूर्व दिशा की ओर तथा सुचक्षु, सीता और महानदी सिंधु- ये तीन धाराएँ पश्चिम की ओर चली गईं। सातवीं धारा महाराज भगीरथ के पीछे-पीछे चली और पृथ्वी पर आई। इस प्रकार भगवान शंकर की कृपा से गंगा का धरती पर अवतरण हुआ और भगीरथ केपितरों के उद्धार के साथ पतितपावनी गंगा संसारवासियों को प्राप्त हुईं।हर हर महादेव🌹🌹🙏🙏🌹🌹
06/08/2015, 10:19 - Prabhu Sharanam: भोजन के नियम :

* भोजन की थाली को हमेशा पाट, चटाई, चौक या टेबल पर सम्मान के साथ रखें।

* खाने की थाली को कभी भी एक हाथ से न पकड़ें। ऐसा करने से खाना प्रेत योनि में चला जाता है।

* भोजन करने के बाद थाली में ही हाथ न धोएं।





* थाली में कभी जूठन न छोड़ें।

* भोजन करने के बाद थाली को कभी किचन स्टैंड, पलंग या टेबल के नीचे न रखें, ऊपर भी न रखें।

* रात्रि में भोजन के जूठे बर्तन घर में न रखें।

* भोजन करने से पूर्व देवताओं का आह्वान जरूर करें।

* भोजन करते वक्त वार्तालाप या क्रोध न करें।

* परिवार के सदस्यों के साथ बैठकर भोजन करें।

* भोजन करते वक्त अजीब-सी आवाजें न निकालें।

* रात में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है अत: समृद्धि चाहने वालों को तथा जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात के भोजन में नहीं करना चाहिए।

* भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए।

* सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।
06/08/2015, 10:19 - Prabhu Sharanam: घर की सफाई :

* कभी भी ब्रह्ममुहूर्त या संध्याकाल को झाड़ू नहीं लगाना चाहिए।

* झाड़ू को ऐसी जगह रखें, जहां किसी अतिथि की नजर न पहुंचे।





* झाड़ू को पलंग के नीचे न रखें।



* घर को साफ-सुथरा और सुंदर बनाकर रखें।

* घर के चारों कोने साफ हों, खासकर ईशान, उत्तर और वायव्य कोण को हमेशा खाली और साफ रखें।

* वॉशरूम को गीला रखना आर्थिक स्थिति के लिए बेहतर नहीं होता है। प्रयोग करने के बाद उसे कपड़े से सुखाने का प्रयास करना चाहिए।

* दक्षिण और पश्चिम दिशा खाली या हल्का रखना करियर में स्थिरता के लिए शुभ नहीं है इसलिए इस दिशा को खाली न रखें।

* घर में काले, कत्थई, मटमैले, जामुनी और बैंगनी रंग का इस्तेमाल न करें चाहे चादर, पर्दे या हो दीवारों का रंग।

* घर में सीढ़ियों को पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण की ओर ही बनवाएं। कभी भी उत्तर-पूर्व में सीढ़ियां न बनवाएं।

* घर में फर्श, दीवार या छत पर दरार न पड़ने दें। अगर ऐसा हो तो उन्हें तुरंत भरवा दें। घर में दरारों का होना अशुभ माना जाता है।
06/08/2015, 10:20 - Prabhu Sharanam: ।। श्री गणेशाय नमः।।
आशुतोष प्रताप पाण्डेय
      सिद्धान्त ज्योतिषी

मुहूर्त की उपयोगिता

जब किसी समय विशेष में जन्म लेने के कारण उस व्यक्ति विशेष का प्रारब्ध निश्चित हो जाता है और उसकी स्वतन्त्रता के क्षेत्र प्रतिबन्धित होते हैं, तो मुहूर्त चयन की उपयोगिता के विषय में प्रश्न खड़ा होता है। किसी भी कार्य विशेष को प्रारम्भ करने के लिए सही समय का चुनाव किस सीमा तक किसी जातक के नियन्त्रण में है, यह विवाद का विषय है।

मुहूर्त की उपयोगिता उस अर्थ में भी होती है, जिसके द्वारा जातक स्वयं को समष्टि के अनुकूल बनाता है। नैसर्गिक बल के विरूद्ध जाने की अपेक्षा यह अधिक अच्छा होता है कि तब किसी कार्य की शुरूआत की जाए जब आलौकिक शक्ति भी अनुकूल हो। मुहूर्त का अध्ययन इन अनुकूल क्षणों की जांच करने अथवा खोज करने में सहायता करता है।


शनिदेव को लोहा चढ़ाने से मिलता है सोना, जानें कैसे
शनिदेव को लोहा अत्यधिक प्रिय है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी पृथवी के गर्भ में सर्वाधिक रूप से लोहा ही समाया हुआ है। लोहा ही हैं जो तपकर फौलाद बनता है। वास्तविकता में शनि और मंगल के बीच लोहा ही वो कनेक्शन है जिसे यह दो ग्रह एक दुसरे से जुड़े हुए हैं। शनिदेव को मंगल की वस्तुएं चढ़ाने से बल मिलता है। कुछ विशेष अवसरों पर लोहा चढ़ाने से कलियुग के क्रोधित देवता का मन पिघल जाता है। इस विशेष योग में ज़रा सा लोहा बन जाता है पारस पत्थर। इस विशेष योग में शनिदेव पर विधि-विधान से लोहा चढ़ाने पर होती है अभीष्ट फल की प्राप्ति।

पौराणिक मतानुसार व किवंदती के अनुसार सूर्यपुत्र शनिदेव को देवगुरु वृहस्पति से यह वरदान प्राप्त है की जब कभी भी शनिवार के दिन वृहस्पति का नक्षत्र विशाखा में आता है उस दिन शनिदेव पर लोहा चढ़ाने से व्यक्ति को अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। मान्यतानुसार श्रावण मास में शनिवार के दिन गुरु का नक्षत्र विशाखा आने पर अगर सप्तमी तिथि पड़ती है तो सुयश नाम का योग बनता है। इस योग को लोह दिवस के नाम से भी जाना जाता है।

मान्यतानुसार कलियुग में शनिदेव का वास लोहे में होता है। ऐसे में शनिदेव को चढ़ाया जाने वाला लोहा सुवर्ण के रूप में पुनः प्राप्त होता है। ऐसा ही एक दान पौराणिक काल में श्रीराम के पिता राजा दशरत ने भी किया था। राजा दशरथ द्वारा निर्मित शनिदेव स्वयं राजा दशरथ से यह बात इस श्लोक के रूप में कहते हैं।

श्लोक: (शनिरुवाच) शमीपत्रैः समभ्यर्च्य प्रतिमां लोहजां मम । माषौदनं तिलैर्मिश्रं दद्याल्लोहं तु दक्षिणाम् ॥४९॥

लोह दिवस के रूप में ऐसा ही सुंदर योग आगामी श्रावण मास के शनिवार दिनांक 22.08.15 को पड़ रहा है। दिनांक 22.08.15 को शनिवार का दिन है, वृहस्पति के नक्षत्र विशाखा है तथा सप्तमी तिथि भी है।


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